हरियाणा का वो गांव जहाँ 71 साल तक तिरंगा नहीं फहराया गया
इतिहास जानकर रूह कांप जाएगी

🎯 हरियाणा का वो गांव जहाँ 71 साल तक तिरंगा नहीं फहराया गया
नमस्कार, प्रिय पाठकों!
आज हम आपको एक ऐसे अनकहे इतिहास की पृष्ठभूमि में ले चलेंगे, जहाँ हरियाणा के भिवानी जिले का एक छोटा‑सा गांव—रोहनात—अपने “गाँव ऑफ़ रेबेल्स” (Village of Rebels) के नाम से जाना जाता है। यहाँ स्वतंत्रता के बाद भी 71 वर्षों तक तिरंगा नहीं फहराया गया। यह कथा वीरता, बलिदान, न्याय की आस और गौरवशाली पीड़ा की है, जिसे जानकर आपकी रूह कांप उठेगी।
इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे—क्या हुआ था 1857 में, अंग्रेजों ने गाँव को किस तरह सजा दी, लोग क्यों राष्ट्रध्वज न फहराने का निर्णय लिए, और आखिरकार 2018 में तिरंगा क्यों फहराया गया।
Highlights
- Historical Background: 1857 Revolt
- प्रमुख बलिदान
- British Oppression
- Labeling as Rebel Village
- Decision Not to Hoist the Flag
- Pain as Protest
- Turning Point: March 23, 2018 – CM Khattar’s Visit
- Recognition
- Redressal
- Development
- The Struggle Continues
- Summary – Key Takeaways
- निष्कर्ष (Conclusion)
- Call To Action
आइए शुरू करते हैं!
📜 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: 1857 की पहली क्रांति (Historical Background: 1857 Revolt)
29 मई 1857 की घटना में रोहनात के ग्रामीणों ने ब्रिटिश जेल तोड़कर कैद स्वतंत्रता सेनानियों को रिहा किया। इस दौरान 11 ब्रिटिश अधिकारियों की हत्या कर दी गई थी, जिसमें उस्तादों और साहसी युवाओं ने भाग लिया ।
इसके बाद अंग्रेजों ने स्ट्रेटेजिक बदला लिया। General Courtland ने गाँव पर तोपों से हमला किया और ग्रामीणों को “रोलर” के नीचे कुचलवाया, जिससे वह दृश्य लाल सड़क के रूप में इतिहास में अंकित हो गया—जिसे आज भी ‘लाल सड़क’ कहा जाता है ।
कुछ प्रमुख बलिदान पीड़ाओं में शामिल हैं:
बिरहड़ बैरागी को तोप पर बांध कर उड़ा दिया गया।
गाँव की कई महिलाओं ने इज्जत बचाने के लिए कुएँ में छलांग मार कर अपनी जान दी।
हज़ारों ग्रामीणों की जमीन नीलामी कर दी गई, कुल 20,656 बीघा ज़मीन महज़ ₹8,000 में नीलाम हुई, और भविष्य में गाँववालों को वापस न देना तय था ।
⚔️ ब्रिटिश जुल्म और गाँव का बागी घोषित होना (British Oppression & Labeling as Rebel Village)
अंग्रेजों ने गाँव की पहचान ही बदल दी—फरमान जारी हुआ कि रोहनात एक “बागी गाँव” है, जिसकी हर उपलब्धि सशक्त विद्रोह की कहानी बयां करती है ।
नीलामी के बाद जमीनें पड़ोस के गाँव वालों को सस्ती कीमतों में बिक गईं। सरकार ने आदेश जारी किया कि भविष्य में यह जमीन रोहनात वालों को कभी नहीं दी जाएगी ।
वर्तमान पीढ़ी के गाँववासी आज भी उस इतिहास की न्यायिक रिक्तता को महसूस करते हैं, जब आजादी के 71 साल बाद भी उन्हें अपना हक नहीं मिला।
🚫 तिरंगा न फहराने का निर्णय: दर्द और प्रतीक (Decision Not to Hoist the Flag: Pain as Protest)
स्वतंत्रता मिलने के बावजूद, रोहनात वासियों ने 2018 तक तिरंगा नहीं फहराया और न ही स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस समारोह मनाए। उनका मानना था कि अभी उनकी मूलभूत न्याय और सम्मान की प्राप्ति नहीं हुई है ।
किसी ने कहा, “आजादी तब तक पूरी नहीं हुई जब तक हमें हमारी जमीन, हमारे शहीदों का दर्जा, और सम्मान न मिले।” इसलिए यह उनकी मौन प्रतिरोध की नीति बन गई ।
वहाँ की भूमि वापस मिले—यह उनकी सबसे बड़ी मांग थी। नहीं मिलने पर उन्होंने तिरंगा फहराने से मना कर दिया।
🎉 मोड़: 23 मार्च 2018—सीएम खट्टर का दौरा (Turning Point: March 23, 2018 – CM Khattar’s Visit)
23 मार्च 2018 (Shaheedi Diwas) को तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर गाँव पहुँचे और पहली बार राष्ट्रीय ध्वज फहराया। यह पहली बार था कि रोहनात में तिरंगा लहराया गया ।
इस कार्यक्रम में गाँव के बुजुर्गों को सम्मानित किया गया। खट्टर ने घोषणा की कि गाँव के शहीदों को समर्पित चार एकड़ पर “शहीद स्मारक” बनाया जाएगा, साथ ही एक “रोहनात फ्रीडम ट्रस्ट” का गठन ₹1 करोड़ के साथ किया जाएगा, जिससे वरिष्ठ नागरिकों के इलाज की सुविधा होगी ।
🔧 विकास, सम्मान और सुधार (Recognition, Redressal & Development)
सरकार ने गाँव में वेबसाइट, लाइब्रेरी, व्यायामशाला, और गाँव गौरव पट्ट का निर्माण करवाया। साथ ही लोगों को चिकित्सा सुविधाएँ दी गईं। योजनाओं में जल पाइप, सड़कें, स्वास्थ्य केंद्र सुधार जैसे वादे भी शामिल थे ।
छात्रों के पाठ्यक्रम में रोहनात का इतिहास शामिल करने की घोषणा हुई—ताकि आने वाली पीढ़ियाँ इस वीरता को जानकर प्रेरणा लें ।
**“लाल सड़क”**, फांसी पेड़, और कुएँ की जगह जैसी ऐतिहासिक स्थलकों को संरक्षित और स्मारक स्थल के रूप में विकसित करने के प्रयास हुए ।
🤝 संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ (The Struggle Continues)
जैसे-जैसे समय बीता, गाँव वालों की ज़मीन और सम्मान की मांग अभी भी पूरी नहीं हुई।
2022/23 में रोहनात में धरने चल रहे थे, जिसमें मुख्य मांगें थीं—खोई जमीन की वापसी और गाँव को “शहीद गांव” का दर्जा दिया जाना ।
सरकार ने कुछ राहत भरे कदम उठाए—जैसे मृतक परिवारों को आर्थिक मदद और सरकारी नौकरी देने का वादा—परन्तु पूर्ण समाधान अभी अधूरा है ।
📄 सारांश — प्रमुख बिंदु (Summary – Key Takeaways)
बिंदु विवरण
गाँव रोहनात, भिवानी जिला, हरियाणा
विचरण 29 मई 1857 – अंग्रेजों का दमन
शहीद अनेक ग्रामीणों ने बलिदान दिया; महिलाओं ने कुएं में छलांग लगाकर आत्महत्या की
नीलामी 20,656 बीघा ज़मीन महज ₹8,000 में नीलाम; गाँव को “बागी” घोषित
शोषण के पश्चात आज़ादी के 71 वर्ष तक तिरंगा नहीं फहराया गया
टाइमलाइन 23 मार्च 2018 – पहली बार तिरंगा फहराया गया
विशेष घोषणाएँ शहीद स्मारक, स्कूल पाठ्यक्रम में इतिहास, लाइब्रेरी, ट्रस्ट, चिकित्सा सुविधा
मांगें खोई जमीन की न्यायपूर्ण वापसी, “शहीद गांव” का दर्जा
🧭 निष्कर्ष (Conclusion)
रोहनात गाँव की यह कहानी प्रतीक है—वहाँ के लोगों की वीरता, बलिदान और न्याय की अटूट चाह का। अंग्रेजों के अत्याचार, जमीन की जबरन नीलामी, अपमान और पीड़ा—ये सभी अनुभव उन्होंने सहन किए। इसीलिए स्वतंत्रता के बावजूद तिरंगा न फहराना उनके आत्मसम्मान और प्रतीकात्मक विरोध की प्रतिभा थी।
लेकिन 2018 की घटना—a Chief Minister arriving, इतिहास का सम्मान, तिरंगा फहराना, और नई शुरुआत—यह संकल्प और संवेदना का क्षण था। परन्तु अभी भी गाँव की खोजी न्याय यात्रा पूरी नहीं हुई है।
इस लेख से मैं आपसे अनुरोध करता हूँ—यदि आप आगे की जानकारी चाहते हैं, या इस गाँव के संघर्ष पर कोई डॉक्यूमेंट्री, फोटोग्राफी, या सामाजिक पहल करना चाहते हैं, तो कृपया संवाद करें।

📣 कॉल‑टू‑एक्शन (Call to Action)
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2. चाहे आप इतिहास प्रेमी, सामाजिक कार्यकर्ता या विद्यार्थी हों—मुझे बताएं कि आप आगे क्या जानना चाहेंगे—फिल्म, डॉक्यूमेंट्री, या गाँव में कोई सामुदायिक पहल?
3. टिप्पणी में अपनी प्रतिक्रिया लिखिए: क्या आपको लगता है कि रोहनात को “शहीद गांव” का दर्जा मिलना चाहिए?
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