Parle-G Ke Success Hone Ki Story
Parle-G Ke Success Hone Ki Story

एक भारतीय ब्रांड जिसने दुनिया को चौंका दिया
भारत में जब कभी सस्ती, स्वादिष्ट और भरोसेमंद बिस्किट की बात होती है, तो सबसे पहला नाम ज़ुबान पर आता है — पारले-जी।
यह सिर्फ एक बिस्किट नहीं है, बल्कि एक भावना (emotion) है, जो करोड़ों भारतीयों के बचपन, भूख, स्कूल लंच और चाय की चुस्कियों से जुड़ी हुई है।
इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि कैसे एक छोटा सा ब्रांड “पारले-जी” बना भारत का नंबर-1 बिस्किट, और कैसे इसने वैश्विक स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई।
Highlights
- पारले की शुरुआत
- पारले ग्लूको का जन्म
- पारले-जी: एक नाम, जो घर-घर में गूंजा
- क्यों बना पारले-जी हर घर का हिस्सा?
- ब्रांडिंग और मार्केटिंग में क्रांति
- पारले-जी का वैश्विक विस्तार
- कोरोना काल में पारले-जी का पुनरुत्थान
- सांस्कृतिक पहचान और भावनात्मक जुड़ाव
- पारले-जी की सफलता के राज
- आज की स्थिति: पारले-जी कहाँ है आज?
- साल 1929: विले पार्ले की फैक्ट्री
- संस्थापक का विज़न
- स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ाव
- निष्कर्ष: एक बिस्किट जिसने दिलों पर राज किया
पारले-जी के सक्सेस होने की कहानी: एक भारतीय ब्रांड जिसने दुनिया को चौंका दिया
भारत में जब कभी सस्ती, स्वादिष्ट और भरोसेमंद बिस्किट की बात होती है, तो सबसे पहला नाम ज़ुबान पर आता है — पारले-जी।
यह सिर्फ एक बिस्किट नहीं है, बल्कि एक भावना (emotion) है, जो करोड़ों भारतीयों के बचपन, भूख, स्कूल लंच और चाय की चुस्कियों से जुड़ी हुई है।
इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि कैसे एक छोटा सा ब्रांड “पारले-जी” बना भारत का नंबर-1 बिस्किट, और कैसे इसने वैश्विक स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई।
पारले की शुरुआत: एक स्वतंत्र भारत का सपना
साल 1929: विले पार्ले की फैक्ट्री
पारले की कहानी शुरू होती है 1929 में, जब ब्रिटिश राज का दौर चल रहा था। मुंबई के उपनगर विले पार्ले में एक छोटे से कारखाने की स्थापना की गई। इस कारखाने का उद्देश्य था भारत में स्वदेशी मिठाइयाँ और बेकरी उत्पाद तैयार करना।
संस्थापक का विज़न
इस फैक्ट्री की स्थापना की थी मोहानलाल दयाल नामक एक दूरदर्शी व्यापारी ने। उस दौर में बाजार पर विदेशी बिस्किट्स का कब्जा था, और आम भारतीयों के लिए उन्हें खरीदना आसान नहीं था।
दयाल जी का सपना था — “हर भारतीय तक एक सस्ता और पौष्टिक विकल्प पहुँचाना।”
पारले ग्लूको का जन्म: भारत का पहला देसी बिस्किट
1939: देश का पहला स्वदेशी बिस्किट
साल 1939 में पारले ने भारत का पहला ग्लूकोज़ बिस्किट लॉन्च किया — नाम रखा गया “पारले ग्लूको”।
इस बिस्किट का लक्ष्य था — बच्चों और आम लोगों को सस्ती कीमत में ऊर्जा देना।
स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ाव
इस समय देश में स्वदेशी आंदोलन ज़ोर पकड़ रहा था, और पारले ग्लूको उसी भावना का प्रतिनिधित्व करता था।
इसका प्रचार इस तरह किया गया:
“स्वदेशी अपनाओ, विदेशी छोड़ो।”
पारले-जी: एक नाम, जो घर-घर में गूंजा
1980 के दशक में बदलाव
1980 के दशक में कंपनी ने “पारले ग्लूको” का नाम बदल कर रखा — “पारले-जी”।
यहाँ ‘G’ का मतलब था Gluco
पैकेजिंग और आइकॉनिक बच्ची
पारले-जी की नई पैकेजिंग में एक मासूम सी बच्ची का चेहरा छापा गया, जो जल्द ही देश की पहचान बन गया।
आज भी लोग पूछते हैं:
“ये पारले-जी की बच्ची कौन है?”
हालांकि कंपनी ने कभी इस पर अधिकारिक जानकारी नहीं दी, पर यह चेहरा भारत की सबसे अधिक पहचानी जाने वाली छवियों में से एक बन गया।
क्यों बना पारले-जी हर घर का हिस्सा?
किफायती कीमत
जब बाजार में अन्य बिस्किट महंगे थे, पारले-जी केवल 50 पैसे में उपलब्ध था। इससे यह गरीब, मध्यम वर्ग और अमीर सभी के लिए सुलभ बन गया।
स्वाद और गुणवत्ता का संतुलन
एक जैसा स्वाद, हर पैकेट में वही भरोसेमंद क्वालिटी — यही था पारले-जी की यूएसपी (USP)।
चाय का बेस्ट फ्रेंड
भारत में चाय और बिस्किट का रिश्ता बहुत गहरा है, और पारले-जी इस जोड़ी का सबसे विश्वसनीय साथी बन गया।
ब्रांडिंग और मार्केटिंग में क्रांति
जीनियस का टैगलाइन
1990 के दशक में पारले-जी ने अपनाया नया स्लोगन —
“G means Genius”
इस मार्केटिंग कैंपेन ने बिस्किट को बच्चों के लिए स्मार्टनेस और पोषण का पर्याय बना दिया।
टीवी विज्ञापनों की सफलता
टीवी पर दिखाए गए विज्ञापन, जिसमें बच्चे पारले-जी खाकर पढ़ाई में तेज हो जाते हैं — लोगों को बहुत पसंद आए।
यह ब्रांड सीधे माँ-बाप से संवाद करता था:
“अगर आप चाहते हैं कि बच्चा जीनियस बने, तो पारले-जी दीजिए।”
पारले-जी का वैश्विक विस्तार
भारत से विदेश तक
पारले-जी सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रहा। यह बिस्किट यूएसए, अफ्रीका, मिडल ईस्ट, नेपाल, बांग्लादेश जैसे देशों में एक्सपोर्ट किया जाने लगा।
वर्ल्ड रिकॉर्ड
2003 में पारले-जी ने एक कीर्तिमान स्थापित किया:
“दुनिया का सबसे ज्यादा बिकने वाला बिस्किट ब्रांड।”
इसने ओरियो, डाइजेस्टिव जैसे अंतरराष्ट्रीय ब्रांड्स को भी पीछे छोड़ दिया।
कोरोना काल में पारले-जी का पुनरुत्थान
लॉकडाउन में लोगों का सहारा
2020 में जब पूरा देश लॉकडाउन में था, तब पारले-जी ने लोगों की भूख मिटाई।
सरकार, NGO और समाजसेवियों ने राहत सामग्री में सबसे ज़्यादा पारले-जी को शामिल किया।
रिकॉर्ड बिक्री
पारले कंपनी ने कहा कि अप्रैल और मई 2020 में, कंपनी ने 8 सालों का सबसे बड़ा सेल्स रिकॉर्ड बनाया।
लोगों ने सोशल मीडिया पर कहा:
“भूख लगी हो, और कुछ न मिले, तो पारले-जी ही सही।”
सांस्कृतिक पहचान और भावनात्मक जुड़ाव
हर भारतीय की यादों में बसा
पारले-जी अब एक इमोशनल ब्रांड बन चुका है।
वो बिस्किट जो:
स्कूल लंच में होता था
चाय के साथ डुबाकर खाया जाता था
दादी-नानी की गोद में बैठकर खाया गया
फिल्मों और शायरियों में भी जगह
आपने कई जगह सुना होगा:
“चाय में डुबाया, और वो घुल गया — जैसे तेरी यादें, पारले-जी।”
आज की स्थिति: पारले-जी कहाँ है आज?
अरबों की कंपनी
आज पारले-जी सालाना 10,000 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार करती है।
यह बिस्किट हर महीने करीब 100 करोड़ यूनिट्स में बिकता है।
सबसे बड़ा FMCG ब्रांड
पारले प्रॉडक्ट्स आज भारत की सबसे बड़ी FMCG कंपनियों में गिनी जाती है।
ब्रिटानिया, आईटीसी, नेस्ले जैसी कंपनियों को कड़ी टक्कर देने वाला ब्रांड है यह।
निष्कर्ष: एक बिस्किट जिसने दिलों पर राज किया
पारले-जी की कहानी एक असली भारत की कहानी है — जहाँ सीमित संसाधनों से शुरू कर, कड़ी मेहनत और सच्ची नीयत के साथ, एक ब्रांड ने हर घर की टेबल पर अपनी जगह बना ली।
यह बिस्किट सिर्फ भूख नहीं मिटाता, यह यादें ताज़ा करता है।
क्या आपने आज पारले-जी खाया?
अगर नहीं, तो अगली बार चाय के साथ इसे ज़रूर आज़माइए — और सोचिए कि कैसे एक छोटी सी कंपनी ने इतिहास रच दिया।
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